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Gita Press
Dukh Kyon Hote Hain? (Lok Parlok Ka Sudhar Bhag-5) - 357
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दुख क्यों होते हैं? (लोक-परलोक का सुधार भाग-5) — (पुस्तक कोड: 357) गीता प्रेस, गोरखपुर द्वारा प्रकाशित यह प्रेरणाप्रद पुस्तक महान संत पूज्य श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी द्वारा रचित है।
इस पुस्तक में जीवन में आने वाले दुखों के कारणों का आध्यात्मिक दृष्टिकोण से गहराईपूर्वक विश्लेषण किया गया है। इसमें बताया गया है कि दुख केवल एक पीड़ा नहीं, बल्कि आत्मविकास, ईश्वर-प्राप्ति और कर्तव्यबोध का अवसर भी हो सकते हैं। ग्रंथ के माध्यम से पाठकों को यह समझाया गया है कि दुख किस प्रकार हमारे जीवन को सुधारने, संयमित करने और भगवान की ओर मोड़ने का साधन बन सकता है।
सरल भाषा में लिखी यह पुस्तक प्रत्येक जिज्ञासु और साधक को आत्मचिंतन, धैर्य, श्रद्धा और आध्यात्मिक चेतना के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।
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