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Hamare Shri Maharaj Ji (Shri Udiya Baba Ji)
Hamare Shri Maharaj Ji (Shri Udiya Baba Ji)
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'हमारे श्री महाराजजी' यह श्रीमत् प.प श्री उड़िया बाबा जी महाराज का जीवन चरित्र हैं।
श्रीमत् परमहंस परिव्राजकाचार्य श्री उड़िया बाबा जी महाराज अपने समय के एक सर्वमान्य संत थे। उनके अनुभव, ब्रह्मनिष्ठा और त्याग-वैराग्य के कारण साधु-समाज में उनका बहुत ऊँचा स्थान था। उनके कथन में एक नविन ओज और प्रभाव होता था। वे सदा लक्ष पर दृष्टि रखकर बोलते थे और थोड़े शब्दों में ही बहुत ऊँची बात कह जाते थे। वे यद्यपि कोई वक्ता, व्याख्याकार या लेखक नहीं थे। तथापि उनमें कुछ ऐसा आकर्षण था कि लोग उनके दर्शन और वाक्य-श्रवण को सर्वदा लालायित रहते थे।
श्रीमहाराजजी 'तुम ब्रह्म हो' ऐसा प्रायः नहीं बोला करते थे। 'मैं ब्रह्म हूँ' ऐसा भी नहीं बोलते थे। उनसे जब कोई पूछता कि आप कौन हैं तो कहते 'जो तुम देख रहे हो'। कभी कहते 'मैं चराचर का सेवक हूँ'। कभी कहते 'मेरे एक-एक रोमकूपमें कोटि-कोटि ब्रह्मा, विष्णु, महेश चिंनगारियोंकी तरह चमकते और बुझते रहते हैं।
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