Gita Press
Nari Ank (Kalyan) - 43
Nari Ank (Kalyan) - 43
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गीता प्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित “नारी अंक (कल्याण)” – बुक कोड 43 एक प्रेरणादायक विशेषांक है, जिसमें भारतीय नारी के आदर्श चरित्र और भूमिकाओं पर गहन विचार प्रस्तुत किया गया है। यह विशेषांक 1948 में कल्याण मासिका के 22वें वर्ष में प्रथम बार प्रकाशित हुआ, और तत्काल ही एक लाख प्रतियाँ बिककर समाप्त होने के बाद इसे पुनर्मुद्रित कर ग्रंथाकार संस्करण में उपलब्ध कराया गया । इसमें भारतीय संस्कृति में नारी के गौरवपूर्ण पद, उनके पारंपरिक संस्कारों की महत्ता तथा आधुनिक समय में उन्हें घेरे जा रहे अनेक सामाजिक-वैचारिक संकटों—जैसे पश्चिमी प्रभाव, फैशन और पारंपरिक मूल्यों के मध्य टकराव—की विवेचना की गई है । संतों, विदुषियों और विद्वानों के लेखों के माध्यम से नारी धर्म, कर्तव्य, गौरव और कल्याण जैसे विषयों पर विशेष प्रकाश डाला गया है, तथा अनेक महान भारतीय महिलाएं—देवियाँ, संत-महात्माओं और समाजसेविकाओं के जीवन आदर्श पर आधारित प्रेरक सामग्री संकलित की गई है । लगभग 1040 पृष्ठों के इस हार्डकवर ग्रंथ में महिला पाठकों को आत्म-बोध, प्रेरणा और संस्कृति-केंद्रित जीवन मूल्यों के साथ पुनः जुड़ने का अवसर मिलता है । कुल मिलाकर, नारी अंक (कोड 43) समाज में नारी-मंगल और नारी-कल्याण के लिए समर्पित एक समृद्ध, चिंतनशील एवं संग्रहणीय ग्रंथ है, जिसे श्रद्धालु, जिज्ञासु और संस्कृति-प्रेमी पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी माना जाता है।
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